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Dharmputra

2004

Main Jab Bhi Akeli Hoti Hoon

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Lyrics
मैं जब भी अकेली होती हूँ
मैं जब भी अकेली होती हूँ
तुम छुपके से आ जाते हो
और झाँक के मेरी आँखों में
बीते दिन याद दिलाते हो
बीते दिन याद दिलाते हो

मस्ताना हवा के झोंको से
हर बार वो परदे का हिलना
परदे को पकड़ने की धुन में
दो अजनबी हाथों का मिलना
आँखों में धुंआ सा छा जाना
साँसों में सितारे से खिलना
बीते दिन याद दिलाते हो
बीते दिन याद दिलाते हो

मुड़ मुड़ के तुम्हारा रस्ते में
तकना वो मुझे जाते जाते
और मेरा ठिठक कर रुक जाना
चिलमन के करीब आते आते
नज़रों का तरस कर रह जाना
एक और झलक पाते पाते
बीते दिन याद दिलाते हो
बीते दिन याद दिलाते हो

बरसात के भीगे मौसम में

बरसात के भीगे मौसम में
सर्दी की ठिठरती रातों में
पहरों वो यूं ही बैठे रहना
हाथों को पकड़कर हाथों में
और लम्बी लम्बी घड़ियों का
कट जाना बातों बातों में
बीते दिन याद दिलाते हो
बीते दिन याद दिलाते हो

रो रो के तुम्हें ख़त लिखती हूँ

रो रो के तुम्हें ख़त लिखती हूँ
और खुद पढ़कर रो लेती हूँ
हालात के तपते तूफ़ान में
जज़्बात की कश्ती खेती हूँ
कैसे हो कहाँ हो कुछ तो कहो
कैसे हो कहाँ हो कुछ तो कहो
मैं तुम को सदायें देती हूँ
मैं जब भी अकेली होती हूँ
मैं जब भी अकेली होती हूँ
तुम छुपके से आ जाते हो
और झाँक के मेरी आँखों में
बीते दिन याद दिलाते हो
बीते दिन याद दिलाते हो

WRITERS

N DUTTA, SAHIR LUDHIANVI

PUBLISHERS

Lyrics © Royalty Network

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